शिव हिंदू देवकुल के तीसरे और महत्वपूर्ण देव हैं, जिन्हे विनाशक भी माना जाता है. पहले देव ब्रह्मा, जिन्हे विधाता माना जाता है, और दूसरे, विष्णु जिन्हे रक्षक माना जाता है. यह लोकप्रिय मूर्ति शिव को नटराज के रूप में दर्शाती है जिन्हे नृत्य कला का देवता भी माना जाता है. शिव नटराज, आनंद तांडव के ब्रह्मांडीय नृत्य को दर्शाता है. यह रचना, विनाश, और पुनर्जन्म के अनन्त चक्र का प्रतीक है. यह हिंदू धर्म की आधारशिला है जिसने कई प्रकार की कला को प्रभावित किया.
नटराज के दाएँ पाँव के नीचे अविनाशी दानव अप्स्मारा है जो अज्ञान का प्रतीक है. अप्स्मारा का अविनाशी जीवन ब्रह्मांड में ज्ञान और अज्ञान के बीच में संतुलन बनाने में महत्वपूर्ण है, क्योंकि अज्ञानता के बिना ज्ञान का कोई महत्व नही है. इसलिए यह माना जाता है की शिव सदेव अपने नटराज रूप में रहतें हैं ताकि वह अप्स्मारा को पराजित कर सकें.
उन्हें एक प्रज्वलित प्रभामंडल के रूप में जाना जाता है, जो समय के चक्रीय प्रकृति को दर्शाता है. तांडव के कारण उनकी जटाएं बिखरी हुई हैं l अपने ऊपरी-दाहिने हाथ में उन्होंने डमरू पकड़ा हुआ हैं जिसे बजाकर वह रचना के चक्र का संकेत दे रहें हैं l अपने ऊपरी-बाएँ हाथ में उन्होंने अग्नि को रखा हैं जो विनाश का प्रतीक हैं l उनके निचले-दाएं और निचले-बाएँ हाथ की मुद्राएं रक्षा और मोक्ष को दर्शातें हैं l शिव नटराज के कुछ पुराने संस्करण 5 वीं शताब्दी की शुरुआत में दिखाई दिए थे, यह प्रतिष्ठित प्रतिपादन पहली बार लगभग 10 वीं और 11 वीं शताब्दी में दक्षिणी भारत के चोला राजवंश में बनाया गया था।
हालाँकि अब यह मूर्तियां हाथ से नहीं बनायीं जाती हैं, लेकिन हिन्दू घरों, मंदिरों, और अनुष्ठानों में इनका उपयोग बहुत लोकप्रिय हैं l
- माया तोला
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