उतमकुरा (तकिये की कविता) by Kitagawa Utamaro - १७८८ - २५४ x ३६९ मिमि उतमकुरा (तकिये की कविता) by Kitagawa Utamaro - १७८८ - २५४ x ३६९ मिमि

उतमकुरा (तकिये की कविता)

उकियो-ए • २५४ x ३६९ मिमि
  • Kitagawa Utamaro - c. 1753 - October 31, 1806 Kitagawa Utamaro १७८८

उतमकुरा (तकिये की कविता) १२-छपी हुई सचित्र शुंगा (काम मुखर) पुस्तक का शीर्षक है I उतमकुरा  एक शास्त्रीय जापानी अलंकारिक संकल्पना है जिसमे जगहों के नाम के साथ काव्यात्मक विशेषण जोड़े जाते हैं I उतमकुरा  मकुरा (तकिया) के हिस्से का लाभ उठा कर शयन कक्ष के अंतरंग गतिविधि पर संकेत करता है; उतमकुरा और मकुरा-कोटोबा (तकिये सम्बन्धी शब्दों) का प्रयोग किताब की प्रस्तावना में कई बार हुआ है I 

अपने समय की सचित्र किताबों से इतर उतमकुरा  में विषय के साथ का पाठ नहीं है और अत्यलंकृत तकनीकों का प्रयोग है जैसे उभारीकरण, चमकने के लिए माइका का छिड़काव और बोकाशी, रंगों के उन्नयन की एक तकनीक जिसे छपाई ब्लॉक पर स्याही की मात्रा में हेर फेर कर प्राप्त किया जाता है I 

शुंगा संभवतः सभी वर्गों के महिला और पुरुषों द्वारा पसंद किया जाता था I शुंगा सम्बंधित अंधविश्वास और रिवाज़ यह संकेत करते हैं की शुंगा मृत्यु से बचने के लिए नजर बट्टू का काम करता था, व्यापारियों के गोदामों और घरों को आग से बचIने के लिए इसे कवच मIनI जाता था I इससे हम पाते हैं की समुराई, चोनिन और गृहणियां सभी शुंगा रखते थे I औरतों का किताब किराये पर देने वालों से शुंगा लेने के अभिलेख दिखाते हैं की वे इसे ग्रहण करती थी I दुल्हन को शुंगा भेट करना पारम्परिक था I संभवतः यह अमीर परिवारों के पुत्रों और पुत्रियों के लिए काम विद्या में मार्गदर्शन का काम करता हो I 

पि.एस. यहाँ जापान के शुंगा के बारे में सब कुछ जाने (+१८) I 

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