विवेक का रूपक by Simon Vouet - 1645 - 116,5 x 90,5 से. मी. विवेक का रूपक by Simon Vouet - 1645 - 116,5 x 90,5 से. मी.

विवेक का रूपक

कैनवास पर तेल रंग • 116,5 x 90,5 से. मी.
  • Simon Vouet - 9 January 1590 - 30 June 1649 Simon Vouet 1645

बारोक कला में एक झूट छुपा है। वह असलियत को रंगों में सोख कर, असाधारण विवरणों को संतृप्त करती है , दूसरी ओर प्रकाश का इस्तेमाल इस तरह होता है की वह हर रूख में सबसे नाटकीय हिस्से पर ज़ोर डालती है। 

विवरणों की भरमार इस हद तक होती है की वह आँखों को थका देती है। इन असाधारण चीज़ो को समझने की प्रक्रिया कुछ इस तरह होती है की, आपका ध्यान स्वाभाविक तौर पे एक मुख्य चीज़ पर पड़ता है और फिर वहाँ से आप चित्र के मतलब तक पहुंचते हैं- इस सुंदर, चमकते वातावरण में एक उदास दर्पण चित्र को डरवाना बनाता है: इस दर्पण की शक्ति को समझना इस चित्र को समझने का उपाय है।

सावधानी से ज़्यादा अच्छा है विवेक, वह दुनिया की छवि को एक सही ढंग से दर्शाता है, इसमें बिना दूसरे को बढ़ावा दिए, दोनों उज्जवल और गहरे रंगों का प्रयोग होता है। हर कोई दुनिया को वैसा ही मान बैठता है, जैसा वह उन्हें  व्यतीत होता है। इसी कारण हमारी सोच की सीमा हमारी सच्चाई की सीमा बन जाति है। सिर्फ़ एक ढंग के रंग को चुनकर चित्र बनाना अपनी दुनिया को छोटा बनाने जैसा है। 

लोगों के अनुसार सकारात्मक रहना ही रहस्य है, उन बादलों की और देखना जहाँ से सूरज उगता है, नकारात्मकता की प्रति-एक छायादार काँटे को गहराई में दफ़ना दें, मार्ग में आने वाली उन सभी ख़ामियों को दबा कर, अपना ध्यान उस अर्ध-देवता की और केंद्रित करें, जो हम बनने की आकांक्षा रखते हैं - तब फ़रिश्ते आकर हमे आनंद से सराबोर कर दंगे।

इस रहस्य में भी एक झूट छुपा है ! "सब ठीक हो जाएगा", समय सारे घाव भर देगा या आख़िरकार किस्मत हमारे पक्ष में पलट जाएगी, इन सब से बढ़कर खतरा किसी बात में नहीं है की हम ख़ुद को ऐसी तसल्ली देते हैं। उन चीज़ों को ज़बरदस्ती नकार देना जो सकारात्मक मार्ग से मेल ना खाती हों इंसान को कमजोर और नक़ली बना देती हैं, इसकी नीव बस इसी बात पर टिकी रहती है की ("में क्या नहीं बनना चाहता")। परंतु यह झूट टिकता नहीं है, क्योंकि इसकी नीव सच्ची नहीं है। कोई इस आत्मप्रतारणा के ऊपर कैसे रह सकता है? यह ख़ुद में एक असभ्य विचार है। 

इस चित्र में हम उसी नकारात्मकता से टकराते हैं, वह एकमात्र चीज़ है जो हमारी आँखों में देखती है, और इसके बिना हम व्यर्थ आभूषणों में खोए रहते हैं। यह दर्पण हमारे अंदर की सच्चाई दिखाता है, हमारे अंदर की निराशावाद सोच को, अंदरूनी और बाहरी क्रूरता और दुर्भाग्य को। वह निराशावाद की शक्ति है जो हमे बुरे अंजाम से निपटने की  तैयारी करने की ताक़त देती है, और प्रकृति को सुंदर और बेरहम - दोनों रूप में स्वीकार करने में मदद करती है। यही समझदारी जोखिम और करुणा को खूबसूरत बना देती है। 

विवेकशील होना मतलब पूरी तरह ख़ुद को समझना - कमज़ोरियों को अपनाना, अपनी छवी को चमक-रहित देखना, यह सीखना कि किन परिस्थितियों में अपने आप से क्या अपेक्षा करें, और ख़ुद अपनी अभिलाषा की बजाय वास्तविकता से निपटना। जैसे इस चित्र में सांप को दाहिने हाथ के नीचे एक पार्षद के तौर पर रखा गया है, हमे अपने निर्णय अपने और दूसरो के परिणामों को नज़र में रख कर सोचने की आवश्यकता है। आशावादी होना असल में हमे कमजोर बना देता है। 

बाहरी विवेक पृथ्वी को एक निर्मम स्थान बना देती है। मनुष्य फ़ूड चैन का हिस्सा है। हम खाते और ख़ुद खा भी लिए जाते हैं। हम प्रकृति को नष्ट करते है और कभी कभी प्रकृति हमे तबाह कर देती है। दुख और संकट वह सच्चाई है जिनके ख़िलाफ़ मनुष्य ने कानून बनाए और संस्थाएं खड़ी की। अन्याय के ख़िलाफ़ इस प्रक्रिया में कुछ लोग रह जाते हैं, जिसे आज हम याव्यवस्था कहते है वह किसी ज़माने में ग़ुलामी कहलाती थी। किसी ज़माने में ग़ुलाम होते थे, आज हमारे पास कर्मचारी हैं। और कल अज्ञात है...

विवेक को प्रकृति का एक हिस्सा माना जाना चाहिए, मतलब यह स्वीकार करना की तकलीफ़ जीवन का हिस्सा है, परंतु यह कोई व्यक्तिगत सज़ा के रूप में प्रस्तुत नहीं किया जाएगा। समय हर पल नए सवाल लिए खड़ा है और वह हम पर निर्भर है कि हम कितने तैयार हैं। 

बारोक कला में एक झूट छुपा है। यह दुनिया को वैसा नहीं दिखाती जैसी दुनिया है, परंतु नासमझ आशावाद की बजाए, वह वास्तविकता को गहराई में ले जाति है, कई बार तकलीफ़ के मध्यम से, ताकि सच्चाई स्पष्ट रूप से उभर पाए। 

- आर्तुर डायूस डियोनिसियो