जॉर्ज इन्नेस १९वीं सदी के परिदृश्य कलाकार थे। वह हडसन नदी श्रेणी, जिसका उन्हें कभी-कभी सदस्य भी माना जाता है, और फ्रांस की बारबिज़ॉं अभियान से प्रभावित थे। उन्हें टोनलिज़्म के साथ भी जोड़ा जाता है। चित्रकारी का यह अंदाज़ व्हिसलर द्वारा प्रचलित किया गया था और सहज व् उद्बोधक रंग संगतियों का प्रयोग करता है। इन्नेस तत्वज्ञान से भी आकर्षित थे, विशेषकर आध्यात्मिक ईसाई धर्म के एक रूप, स्वीडनबोर्ज्ञनिस्म से, जो कि उस युग के अमरीकी कलाकारों और लेखकों में लोकप्रिय था। स्वीडनबोर्ज्ञन आध्यात्मिकता में उनकी रूचि का तीव्र प्रभाव उनकी कला पर स्पष्ट है। स्वीडनबोर्ज्ञनिस्म स्वीडिश वैज्ञानिक और तत्वज्ञानी, एमानुएल स्वीडनबोर्ग (१६८८-१७७२) के लेखन पर आधारित है , जिसमें उन्होंने ईश्वर से मिलने पर बाइबिल का वास्तविक अर्थ बताए जाने के विषय में लिखा है। इन्नेस तथा १९वीं सदी के अन्य अध्यात्मवादियों के लिए, स्वीडनबोर्ज्ञनिस्म उनके अपने मतिभ्रह्मों और आंतरिक आध्यात्मिक जीवन से बहुत निकट था, जिन्हें वे भौतिक जीवन जितना ही यथार्थ व महत्वपूर्ण मानते थे। नवीन कलीसिया, जो कि आज भी प्रचलित है, इस धर्म का आधुनिक रूप है।
मौत के साये की घाटी इन्नेस के तीन नियोजित स्वीडनबोर्ज्ञन कामों में से एक है। इस श्रृंखला का शीर्षक था 'क्रूश की विजय' और यह एक आध्यत्मिक तीर्थ यात्रा के प्रतीक के रूप में बनाई गयी थी। इस श्रृंख्ला का सिर्फ यही चित्र आज अस्तित्व में है। इन्नेस के लेखन के मुताबिक, चमकते क्रूश का आसमान को प्रज्वलित करना एक तीर्थ यात्री के विश्वास का चिन्ह है, क्योंकि "इसके पश्चात् उसके पास केवल विश्वास की रोशनी होगी" (बेल्ल, जॉर्ज इन्नेस के मायावी परिदृश्य, ८३)। इसके तले, श्रद्धालु तीर्थ यात्री एक अँधेरी गुफ़ा के अंदर खड़ा दिखता है। यह रहस्यमय, खूबसूरत चित्र किसी आसान कथात्मक व्याख्या से परे है।
- अलेक्सांद्रा कियलि
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