राधा और कृष्ण का संगम एक अभूतपूर्व प्रेम और भक्ति भाव की तीव्रता का अवतरण माना जाता है। ऐसे अननत प्रेम को हिन्दू कला का श्रद्धांजलि अर्पण , खासकर किशनगढ़ मिनीचर चित्रकार विद्यालय द्वारा करना एक महत्वपूर्ण मूल रहा है। लम्बाई में विस्ततृत, दूरी में घटते/ छोटे आकर के सर और सर्प के सामान केशों के झुण्ड, ये कुछ महत्वपूर्ण पहचान हैं इन् चित्रों की।
किशनगढ़ के राजकुमार सावंत सिंह कृष्ण के परम भक्त के रूप में याद किये जाते हैं, वे एक प्रतिभावान कवी और राज दरबार गायिका और कवित्री विष्णुप्रिय के आवेशपूर्ण प्रेमी (बाद में पति ) भी थे। उनके प्रेमालाप को अनादि स्वरुप दिआ था एक प्रतिभावान चित्रकार निहाल चंद ने। अपने चित्र स्वरुप में निहाल चंद ने शाही जोड़े के प्रेम को दर्शाने में राधा कृष्ण केदिव्य प्रेम प्रसंग को प्रेरणस्रोत के रूप लिया। उन्होंने राजकुमार को कृष्ण के सामान नीली चमड़ी में दर्शाया और उनकी प्रेमिका को राधा के स्वरूप में।
कवी राजकुमार द्वारा लिखा गया एक छंद इस त्रिमुखी चित्र का प्रेरणास्तोत्र बना। ऊपर के हिस्सा में शाही जोड़े को सूर्यास्त के वक़्त पर बगीचे में अपने खिदमतगारों के साथ दर्शाया है। बीच के हिस्से में वे एक नदी जो पार कर रहे हैं जो की अभूतपूर्व वास्तुकला संरचनाओं से घिरी है। राजकुमार के हाथ में फूल माला का होना, किशनगढ़ की लघु चित्र कला का विशेष लक्षण है जो की उनके बीच में होने वाले प्रेम कृत्य का प्रतीक है।
जैसे जैसे समय बीतता चला गया सावंत सिंह और विष्णुप्रिया से सांसारिक चक्र से संन्यास ले लिया और भक्ति और भक्तित्व में पूर्णतः लीन हो गए। अंत में इस जीवन से भी भव्य प्रेम का यही औचित्य है, यह माना जाता है की अपने जीवन के आखरी दिन उन्होंने वृन्दावन- भगवान्कृ ष्ण की जन्मभूमी में में इक्कठे गुज़ारे।
- माया तोला
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