इतालवी मूर्तिकार, वास्तुविद एवं बरोक शैली के जनकों में से एक, जिअं लोरेंज़ो बेर्निनी का जन्म १५९८ में आज के दिन हुआ था।
बेर्निनी ने संगमरमर में पराक्रमी देवताओं और शहीद संतो को तराशा जैसा उनसे पहले शास्त्रीय शैली में काम करने वाले कई महान मूर्तिकारों ने किया था। लेकिन उन्होंने अपने सर्वशक्तिशाली विषयों को एक विशिष्ट मानवी स्वरुप से संपन्न किया, उनके रूपों और भावों में आवेशपूर्ण भावनाओं और कामुक आग्रह को तराशते हुए - तीन आयामिन कला और शरीर के अभिवेदन को प्रभावी तौर पर क्रन्तिकारी रूप दिया।
अपोलो और डैफ्नी (१६२२-१६२५), व्यापक रूप से बेर्निनी की पहली उत्कृष्ट कृति मानी जाती है, जो ओविड के मेटामोर्फोसिस में वर्णित पौराणिक रोमन कथा के चरमोत्कर्ष को दर्शाती है। यह अपोलो को कामुकता से डैफ्नी का पीछा करते हुए दिखाता है, जो उसके प्रयासों का प्रतिरोध करती है। जब वह अपने पिता ( नदी देव पनेउस ) को मदद के लिए पुकारती है, तब वो जादुई रूप से डैफ्नी को पेड़ में परिवर्तित करके स्थिति को हल कर देते हैं। बेर्निनी के प्रतिपादन में, अपोलो के ( कामदेव के बाण से प्रेरित ) खोज की तत्परता और लगन का संचार हवा से बिखरे कपडे से, जो की सिर्फ उसके उरुमूल को ढकता है, एवं डैफ्नी तक पहुँचने की कोशिश में उसके तनावपूर्ण धड़ से किया गया है। डैफ्नी की मासूमियत उसके लगभग नग्न शरीर से, उसका डर एक तनावपूर्ण, फैले हुए हाथ और खुले मुंह से; और उसका परिवर्तन उसके बालों का शाखाओं में एवं उसके पैर की उँगलियों का जड़ों में रूपांतरण के माध्यम से दर्शाया गया है।
इस मूर्ति ने कैथोलिक चर्च में कुछ को अप्रसन्न किया, लेकिन औरों के लिए ( जिसमें कार्डिनल स्कीपीओने बोर्घिस भी शामिल थे जिन्होंने इस कृत्य को अधिकृत किया था ) उनकी नज़र में, यह शरीर का सबसे कुशल, यथार्थवादी निरूपण था।
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