लैला और कायस सातवी शताब्दी में उत्तरी अरब में रहते थे। उनके अचेतन प्रेम की दुखभरी दास्तान अरबी, फारसी, तुर्की, अज़रबैजानी और भारतीय संस्कृतियों में कई बार बताई गई है और महान कलात्मक प्रेरणा का स्रोत है। चित्रों के अलावा, उनके बारे में कविताएँ, गीत, नाटक और (हाल ही में) बॉलीवुड फिल्में भी बनी हैं।
कायस एक युवा कवि था जो लैला के साथ अत्यन्त प्रेम करता था और उसके प्रति स्नेह में अनारक्षित था। हालांकि लैला उससे बहुत प्यार करती थी, लैला के परिवार ने सोचा की कायस मानसिक रूप से अस्थिर है और उन्होनें लैला के प्रति कायस की दुस्साहसिक प्रशंसा को अनुचित पाया । जब कायस ने शादी में लैला का हाथ मांगा , तो लैला के परिवार ने उसे ठुकरा दिया और लैला की शादी किसी और से करा दी। अपने प्रिय से अलग कर दिए जाने पर, कायस ने जीने के लिए सभी प्रेरणा खो दी और निराशा में जंगलों में भटकने लगा। उसने अपने दिन लैला के लिए तड़पते हुऐ कविताएँ रचित करते हुए बिताए । इस वजह से उसका नाम मजनूँ (प्रेम से युक्त) पड़ा।
कुछ भारतीय लोककथाओं के अनुसार, अंततः लैला और मजनूँ एक साथ भाग गए और परिवार द्वारा पीछा किए जाने के दौरान रेगिस्तान में मर गए । अपनी मृत्यु से ठीक पहले, उन्हें भारत-पाकिस्तान सीमा पर स्थित एक छोटे से भारतीय गांव बिंजौर में शरण मिली । हालांकि विवादित, स्थानीय लोगों का मानना है कि लैला और कायस को यहाँ दफनाया गया है और उनकी कब्रों को प्यार के प्रतीक के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। यह मजार (समाधि) हर साल कई पर्यटकों को आकर्षित करती है।
आज की कलाकृति किशनगढ़ स्कूल के सम्मानित कलाकार निहाल चंद की लघु पेंटिंग है । यह एक सुरूप लैला को जंगल में गंभीर रूप से क्षीण मजनूँ को मिलते हुए दिखाती है जहाँ वह उसे भोजन प्रदान करती है और उसे खाने के लिए आग्रह करती है।
- माया टोला
पुनश्च : किंग पेड्रो और इनेस डी कास्त्रो - व्हाट लाइफ़ टुक अपार्ट , डेथ पुट बैक टुगेदर - यहाँ एक और प्रेम कहानी के बारे में पढ़े जो कला में अमर है!