समय by David Burliuk - १९१८ - १९१९ समय by David Burliuk - १९१८ - १९१९

समय

समुच्चित चित्र, किरमिच पर तैलचित्र •
  • David Burliuk - 1882 - 1967 David Burliuk १९१८ - १९१९

यह चित्र ध्वस्त रूसी राज्य के इलाके में चल रहे गृहयुद्ध की मुश्किल घडी में रचा गया है, और तेज़ी से आते हुए दुर्निवार्य उत्पात के भाव को साफ़ तौर से व्यक्त करता है। चित्र में औरत का चेहरा बाकी हर वस्तु को खींच रहा है -  असहाय इंसान, घर, रेल की पटरियाँ, खम्बे और पहियें। जैसा कि लेखक ने खुद लिखा था, वह एक ऐसी रेलगाडी की मुसाफिर है जो पटरियों से उतर चुकी है और एक ऐसे देश की मानवीकरण है जो रसातल की ओर गिर रहा है। औरत का चेहरा आश्चर्यतः शांत है, बल्कि उदासीन, वह आसन्न तबाही से मंत्रमुग्ध है। उसकी दाहिनी आँख भँवर का तिमिर केंद्र है, जो ठीकरों में बिखरते भयानक और भड़कीले रंगो से घिरा हुआ है। रेलगाड़ी के गमन से स्थिर आकृतियाँ बेढंगे टुकड़ों में टूट रही हैं।("गत्यात्मक कला" के सिद्धांतों के अनुसार, भविष्य में स्थिर और असिद्ध चित्रकारी सक्रिय और सिद्ध चलचित्र कैमरो से प्रतिस्थापित करी जानी चाहिए)

लेखक ने एक असली अख़बार "व्रेम्य" ("समय") के अंश को इस कृति में शामिल किया है और इसी से इसका नाम पड़ा है।

डेविड बर्लियुक ने विपदा के चलते अंजानता की ओरे सफर करने की कठिनाई को अनुभव किया है। १९१८ में, मॉस्को में चमत्कारपूर्ण ढंग से मौत से बच कर, उन्होंने पूरे सायबेरिया से दूरस्थ पूर्व तक का सफर सर्दी में ट्रेन में तय किया था।

- तात्याना ऐडामेंको

उपलेख - पहले विश्व युद्ध ने दुनिया को बदल दिया और कला को भी प्रभावित किया। इसके बारे में और इधर पढ़ें।