द बुकवर्म स्पिट्जवे की हास्य और उपाख्यानात्मक शैली में विशिष्ट है। यह सामान्य रूप से बिडरमेयर कला की विशेषता है। यह पेंटिंग नेपोलियनिक युद्धों के अंत और १८४८ के क्रांतियों के बीच की अवधि के दौरान यूरोप में आत्मनिरीक्षण और रूढ़िवादी मनोदशा का प्रतिनिधित्व करती है। लेकिन साथ ही में उन व्यवहारों का मज़ाक उड़ाते हैं जिन्हें दुर्गंन्धयुक्त पुराने विद्वान के रूप में समाविष्ट किया जो सांसारिक दुनिया के मामलों की परवाह नहीं करते।
चित्र में बिखरे कपड़े पहने हुए एक बुजुर्ग बाइब्लॉफाइल को पुस्तकालय की सीढ़ी के ऊपर खड़े हुए दिखाया गया है। कई बड़े खंड उनकी भुजाओं के नीचे और उनके पैरों के बीच में जकड़े हुए हैं। वह एक पुस्तक में अदूरदर्शी दृष्टि से देखता है। अपने जाहिरा तौर पर राजसी या ऍबेशियल बारोक परिवेश से अनजान, वह पूरी तरह से अपने शोधों में लीन है। जिस तीव्रता के साथ वह एक समय-शानदार धूल-भरी पुरानी लाइब्रेरी में भित्ति-चित्र वाले दर्पणों के साथ अपनी किताबों को घूरते हैं, वह उस दौर में यूरोप को प्रभावित करने वाले रूढ़िवादी मूल्यों की ओर लौटती है। १८४८ के क्रांतियों के बाद पेंटिंग को निष्पादित किया गया था, जिससे पुस्तकालय की धूल भरे एकांत में सन्निहित स्थिर दुनिया को झटका लगा। पेंटिंग के निचले बाएं कोने में एक पुराना फीका ग्लोब देखा जा सकता है; किताबी कीड़ा बाहर की दुनिया में नहीं लेकिन अतीत के ज्ञान में दिलचस्पी रखता है।
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द बुकवर्म
ऑइल ऑन कॅनवास • ४९.५ x २६.८ से.मी.