राख by Edvard Munch - 1894 - 200 x140 सेमी राख by Edvard Munch - 1894 - 200 x140 सेमी

राख

कैनवास पर तैल चित्रण • 200 x140 सेमी
  • Edvard Munch - 12 December 1863 - 23 January 1944 Edvard Munch 1894

ऐशेज़ यानी राख में मंच ने एक नव युगल को अंधेरे जंगल में दिखाया है। वातावरण मायूसी और नाउम्मीदी से भरा हुआ है। पुरुष बाँई ओर सिर पर हाथ रखे बैठा हुआ है। उसका चेहरा हरा है, वो बीमार प्रतीत होता है। महिला बीच में अपने दोनो हाथ लंबे लाल बालों पर रखे खड़ी है। उसकी आंखे चित्र देखने वाले को देख रही हैं और उसके चेहरे पर मायूसी और वीरानेपन की रेखाएँ है।

राख। धधकती इच्क्षा के बाद क्या बचता है?

राख का मूल भाव कमी या खालीपन से है। प्यार की कमी, आपसी मेल जोल, सवांद और जीवन की खुशी की कमी। अपनी भावुक भाव भंगिमा के साथ साथ एक अपराध बोध की अनुभुति जो कि उन्हें बोझिल करती लग रही है के होते हुए भी जोड़ा बहुत ही प्रभावी उपस्थिति दर्ज करा रहा है।

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