यानूलिस चालेपास (1851 - 1938) ग्रीक (यूनानी) मूर्तिकार थे। उन्होंने अपनी कलाकृतियां युनानी पौराणिक कथाओं पर आधारित की थी। चालेपास ने 19 साल की उम्र से एथेंस शहर में कला की पढ़ाई शुरू की। चार साल के बाद ही उन्हें म्यूनिख अकादमी आफ फाईन आर्ट्स में दाखिला मिल गया। वहां उनकी कला को बहुत प्रशंसा मिली, एवं उन्हें पुरुस्कृत भी किया गया।
दुर्भाग्यवश, 1878 में उनकी मानसिक हालत बिगड़ गई। मानसिक रूप से टूट जाने की हालत में उन्होंने अपनी कई मूर्तियां भी नष्ट कर दीं।
चालेपास को मानसिक रोग से पीड़ित माना गया, और मानसिक रोगी चिकित्सालय में दाखिल कर दिया गया। उनकी माता का मानना था कि मूर्तिकला ही उनकी बीमारी का कारण थी।
1916 में चालेपास वापस काम पर लौट आए, थोड़े समय पश्चात् ही उनकी माता की मृत्यु हो गई।
चालेपास को उनके काम के लिए अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उनका निधन 1938 में 87 वर्ष की आयु में हुआ। लेकिन अंत तक उनकी मानसिक बीमारी का कारण कभी भी पूरी तरह स्पष्ट नहीं हो पाया।
यह कलाकृति, जिसका नाम सैटिर प्लेइग विद इरोस है, चालेपास के मुश्किलों, परेशानी के समय के एक साल बाद पूरी हुई। यह एक सैटिर (आधा मनुष्य और आधा बकरी सा जीव) और प्रेम के देव इरोस ( जो कयूपिड भी कहलाते हैं) को एक साथ खेलते दर्शाती है।
कुछ आलोचकों का मानना है कि सैटिर के चेहरे की क्रूरता, और इरोस के चेहरे की निराशा, चालेपास और उनके पिता के रिश्ते का प्रतिनिधित्व करती है। वह इसलिए, क्योंकि चालेपास के पिता ना तो उनके काम को पसन्द करते थे, और ना ही उनकी जीविका का समर्थन करते थे। आलोचकों का मानना सही हो सकता है, लेकिन अलग दृटिकोण से देखें, तो यह दो सुंदर, अदभुत प्राणियों का खेल ही दर्शाता है।
- रूटे फरेरा
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