हेनरी फांटीं-लटूर शुरुवाती प्रभाववादिओं से परिचित थे और मैने, जिनके साथ उनकी मित्रता १८८३ में मैने की मृत्यु होने तक बरक़रार रही, जैसे कलाकारों से मिलते-जुलते रहते थे। लेकिन फांटीं-लटूर अपने चित्रों में शांतिदायक दृश्यों की रचना करने के लिए अधिकतम वस्तासिकता को प्रधानता देते थे और उनके द्वारा इस्तेमाल किये गए धूसर एवं मटियाली रंगों ने उन्हें अपने समकालीनों से अलग किया।
उनकी बेहेन की इस तस्वीर को १८५९ में कलादीर्घा प्रदर्शनी ने अधूरा होने की वजह से अस्वीकार कर दिया। उन्होंने जानबूझकर अपनी बेहेन के चेहरे और हाथों पर अधिक ध्यान दिया था और कपड़ों एवं पृष्ठभूमि को सामान्य छोड़ दिया था। बजाय इसके फांटीं-लटूर के कृत्यों को, एवं उन कृत्यों को जिन्हे कलादीर्घा प्रदर्शनी ने ठुकराया था, कलाकार फ्रांसवा बोविन ने अपनी शिल्पशाला में प्रदर्शित किया जिसे बोविन की फलंदि कार्यशाला कहा गया।
१८६१ में उनके भाई द्वारा चित्रित मैरी फांटीं-लटूर की एक अनुरूप तस्वीर को कलादीर्घा में प्रदर्शित किया गया, इस बार वह एक अलग मुद्रा में बैठी थी और पृष्ठभूमि अधिक आलंकारिक थी।
पुनश्च : कला में हेनरी फांटीं-लटूर और वाग्नरवाद के सम्बन्ध के बारे में यहाँ पढ़ें।