शीर्षकहीन by Zdzisław Beksiński - १९८३ - ८७ क्ष ७३ से. मी. शीर्षकहीन by Zdzisław Beksiński - १९८३ - ८७ क्ष ७३ से. मी.

शीर्षकहीन

तख़्ते पर तैलचित्र • ८७ क्ष ७३ से. मी.
  • Zdzisław Beksiński - February 24, 1929 - February 21, 2005 Zdzisław Beksiński १९८३

बेकशिन्स्की की कृतियाँ डर, अकेलेपन के भाव, ज़िंदगी के खालीपन व मौत की शक्ति में विश्वास के आधार पर रची गयी थी। उनके चित्रों में बहुत बारीक कारीगरी देखी जाती है। वह हकीकत की दहलीज़ पर कहीं मौजूद दृश्यों को प्रस्तुत करते हैं। यह चित्रकार वस्तुओं के असली रूप से हटकर उनके कला में प्रयोग करे जाने वाले परिवर्तित रूप में रूचि रखते थे। वह कला को प्रकृति का प्रतिबिम्ब नहीं बल्कि अंतर्दृष्टि की प्रस्तुति का माध्यम मानते थे। बेकशिन्स्की की रचनाएँ सपनो की दुनिया को दर्शाती हैं। तथापि सपनो में यह परिवर्तित दुनिया हमें प्राकृतिक मालूम होती है।

बेकशिन्स्की के अंदाज़ को अतियथार्थवाद समझना पूरी तरह सही नहीं है। स्वाधीन सम्बद्धता की विधि इसे इस आंदोलन से जोड़ती है परन्तु कलाकार खुद १९वीं सदी की चित्रकारी से सबसे प्रबल ताल्लुक महसूस करते थे। क्या आप भी इस चित्र को मोने की रुआं गिरजाघर श्रृंखला से जोड़ते हैं?

बेकशिन्स्की की अतियथार्थवादीयों के समान कोई नियमबद्ध योजना नहीं थी, न ही उनके चित्र वास्तविकता को पूरी तरह परिवर्तित करते। उनकी रचना की प्रक्रिया को दो भागों में बांटा जा सकता है - पहले चित्रकार को अनुभव हुई अंतर्दृष्टि की 'तस्वीर निकालना' और फिर बाकी के दृश्य का चित्र बनाना। 

आज प्रस्तुत की जा रही कृति ८० के दशक की है, याने कि उस समय की जब बेकशिन्स्की ऐसे चित्र बना रहे थे जिनमें अर्थ का उतना महत्त्व नहीं था जितना उनकी पूर्व कृतियों में। वह खुद इस बात पर ज़ोर देते थे कि उनकी अंतर्दृष्टियों में किसी गुप्त अर्थ को खोजना व्यर्थ है; दर्शक को इस दुनिया को तर्क से समझने की जगह केवल इसे आत्मसात् करना चाहिए।

- जुडिता डाब्रोवस्का

यह चित्र हम सैनोक में ऐतिहासिक संग्रहालय की बदौलत पेश करते हैं।

उपलेख - क्या आप इस चित्र से मोहित रह गए हैं? ज़जिसवाफ़ बेकशिन्स्की के दुस्थानीय अतियथार्थवाद के बारे में आप और यहाँ जान सकते हैं।